आदमपुर में भजनलाल परिवार की राह इस बार नहीं आसान, 56 सालों का रिकॉर्ड टूटने के कगार पर, थै हर बार नया निशाना लैके आ जा सै

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This time the path of Bhajan family in Adampur is not easy, adampur news

56 सालों में पहली बार भजनलाल परिवार का आदमपुर में विरोध

(पवन सैनी )

Haryana News Today: थानै इबकै ट्रैक्टर के सामणै आलो बटन दबाणो है, थानै इबकै हाथ के सामणै आलो बटन दबाणो है, थानै इबकै कमल के फूल के सामणै आलो बटन दबाणो है… यो कै तमाशो है, थै तो रोज ही नयो निशान ले कै हलकै मै आ जाओ हो… कुछ म्हारो बी तो ख्याल करो, म्हानै बी तो 28 साल होलिया थारै कानीं देखतां… ये जनता जर्नादन है नेताजी! इसे भोली- भाली समझने की भूल मत करना, ये अपनी पर आ जाए तो घुटनों के बल भी चलाने में देर नहीं करती। ऐसा ही नजारा राजनीति में पीएचडी कहलाने वाले नेता के हलके आदमपुर में देखा जा सकता है। कभी एक आवाज पर पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के साथ खड़े होने वाले आदमपुर हलके का मिजाज अब बदलने लगा है। शायद प्रदेश की राजनीति के इतिहास में यह पहली बार देखा गया हो कि भजनलाल परिवार के किसी सदस्य को आदमपुर हलके में चुनाव प्रचार के दौरान सीधे जनता के विरोध का सामना करना पड़ा हो। वरना तो किसी समय हलके के लोगों को अपने विधायक के स्वागत की पूरी इंतजार रहती थी। मुख्यमंत्री रहते हुए भी भजनलाल होली-दीवाली जैसे बड़े त्यौहार अपने हलके के लोगों के बीच में ही रहकर मनाते थे।

आदमपुर ने भजनलाल की तीन पीढ़ियों को विधानसभा भेजा

कभी प्रदेश की राजनीति में आदमपुर हलका अहम् स्थान रखता था। उस वक्त आदमपुर हलके के चर्चे राजनीति के गलियारों में खूब गूंजते थे। आदमपुर हलके को प्रदेश में पहचान दिलाने वाले भी भजनलाल ही थे। भजनलाल ने आदमपुर का नाम देश व प्रदेश की राजनीति में चमकाया तो हलके की जनता ने भी उन्हें वोटों के रूप में खूब समर्थन दिया। सन् 1968 में पहली बार आदमपुर से विधायक बनने वाले भजनलाल की तीन पीढ़ियां आदमपुर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच चुकी हैं। 56 साल के इस अंतराल में हुए विधानसभा चुनावों में आदमपुर हलके की जनता ने भजनलाल व उनके परिवार के अलावा किसी को गले नहीं लगाया। राजनीति के जानकारों का मानना है कि विधानसभा चुनावों में आदमपुर से नामांकन दाखिल करने के बाद भजनलाल अपने चुनाव की जिम्मेदारी हलके की जनता को सौंपकर खुद प्रदेश में अन्य उम्मीदवारों के प्रचार में निकल पड़ते थे। हलके की जनता भी उनकी उम्मीदों पर खरा उतरते हुए उस जिम्मेदारी को जीत के रूप में सौंपकर उन्हें वापस लौटाती थी। आज हालात यह है कि भजनलाल परिवार के सदस्यों को अपनी जीत के लिए हलके में न केवल खूब पसीना बहाना पड़ रहा है बल्कि विरोधी स्वरों का भी सामना करना पड़ रहा है।

पूर्व सीएम भजनलाल ने हलके में कभी नहीं लगने दी सेंध

आदमपुर हलका भजनलाल का अभेद्य दुर्ग कहलाता है। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल ने अपने राजनीतिक जीवन में हलके को पूरी तरह से सुरक्षित रखा। पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल जैसे दिग्गज नेताओं ने आदमपुर से चुनाव लड़कर हलके में सेंध लगाने की कोशिश की लेकिन कामयाबी हासिल नहीं हुई। भजनलाल की अपने हलके की सुरक्षा के लिए की गई घेराबंदी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1987 के विधानसभा चुनाव में लोकदल की ‘सुनामी’ भी आदमपुर हलके पर कोई असर नहीं डाल सकी थी। हलके के ताजा मिजाज को देखा जाए तो बहुत कुछ बदला-बदला नजर आ रहा है। विपक्षी दल भजनलाल के किले को भेदने की कोशिश में लगे हुए हैं। हां इतना भी जरूर है पिछले दो लोकसभा चुनावों की बात करें तो विरोधियों ने भजन के किले को दरका भी दिया। सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में तो पूर्व सीएम भजनलाल के पोते को ही आदमपुर हलके से हार का मुंह देखना पड़ा था। शायद यह भी प्रदेश की राजनीति में एक इतिहास ही था कि आदमपुर हलके से ही भजनलाल परिवार के किसी सदस्य को हार देखनी पड़ी हो। तीन माह पहले हुए लोकसभा चुनाव में भी विपक्ष फिर भजनलाल के हलके को फतेह करने में कामयाब रहा। लोकसभा चुनाव में आदमपुर हलके से कांग्रेस प्रत्याशी को मिली लीड के चर्चे दूर-दूर तक चले थे।

28 साल से आदमपुर को नहीं मिली झंडी वाली गाड़ी

कभी सीएम का हलका कहलाने वाले आदमपुर को 28 साल से झंडी वाली गाड़ी नसीब नहीं हुई है। सन् 1996 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल की सरकार जाने के बाद आज तक आदमपुर को प्रदेश की राजनीति के मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है। हालांकि कई बार मौके भी आए लेकिन आदमपुर को भागीदारी नहीं मिली। सन् 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला था। चुनाव नतीजों में जैसे ही कांग्रेस पूर्ण बहुमत की ओर बढ़ रही थी तो आदमपुर से विधायक भजनलाल के फिर से मुख्यमंत्री बनने की अटकलें शुरू हो गई थी। और हलके में भी खुशी की लहर दौड़ने लगी थी कि अब उन्हे फिर से मुख्यमंत्री का हलका कहलाने का सौभाग्य प्राप्त होगा। लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी में एक सप्ताह चली रस्साकशी में भजनलाल के हाथ से बाजी निकल गई थी। हालांकि उस राज में पूर्व सीएम भजनलाल के बड़े बेटे चन्द्रमोहन को तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने उपमुख्यमंत्री बनाकर मरहम लगाने का प्रयास किया था।

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