- People of Delhi, Rohtak and Panchkula will get life support from Sudesh organs
सुदेश के अंगों से दिल्ली, रोहतक और पंचकूला के लोगों को मिलेगा जीवनदान
कोई जीते जी ऐसा काम नहीं कर पता तो कोई करने के बाद ऐसा काम कर जाता है कि वह करने के बाद भी अमर हो जाता है। दान करने का कोई एक मकसद नहीं होता बल्कि एक जुनून भी होता है और जो लोग दान दक्षिणा करते हैं वह जीते जी तो करते ही हैं और करने के बाद भी अपने अंगों को दान कर दूसरे लोगों को जीवनदान प्रदान करते हैं। ऐसा ही कमाल हिसार जिले के नारनौंद उपमंडल के गांव गामड़ा निवासी सुदेश कुमार कर गए। एक सड़क हादसे में वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उपचार के दौरान उनके ब्रेन डेड हो गया जिसके बाद उनकी पत्नी ने निर्णय लिया कि सुदेश के अंगों को दान किया जाएगा ताकि जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे लोगों के काम आ सके। सुदेश की पत्नी के इस निर्णय की चारों तरफ पूरी प्रशंसा की जा रही है कि आखिरकार सुदेश करने के बाद भी उसकी पत्नी के फैसले से अमर हो गया।
लोगों को भ्रम से बाहर आकर होना चाहिए जागरूक
लेकिन आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे अनजान लोग हैं और तरह-तरह के भ्रम फैलाने वाले भी हैं कि करने के बाद शरीर के अंगों का दान नहीं करना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि अगर मरे हुए व्यक्ति की आंखें दान की जाए तो वह अगले जन्म में अंधा पैदा होगा और कुछ कहते हैं कि अगर उसके दूसरे अंगों का दान किया जाए तो वह दिव्यांग पैदा होगा लेकिन जब हम मरे हुए इंसान का अंतिम संस्कार करते हैं तो उसके सभी अंग जल जाते हैं और दो लोग मिट्टी में दफनाते हैं उनके अंग मिट्टी में गल सड़ जाते हैं। ऐसे में अगर उन लोगों के दोबारा जन्म लेने पर उन्हें कोई परेशानी नहीं होती तो यह एक भ्रम फैलाने वाली बातें हैं क्योंकि शरीर के अंग दान करने से दूसरे लोगों का तो भला होता ही है।
सुदेश का दिल अब धड़केगा किसी ओर के सीने में
हरियाणा के हिसार जिले के नारनौंद उपमंडल के गांव गामड़ा निवासी सुदेश कुमार के ब्रेन डेड होने के बाद उसकी पत्नी ने उनके अंगदान का फैसला किया। पत्नी की सहमति के बाद पंचकूला स्थित अल्केमिस्ट अस्पताल ने ग्रीन कारिडोर बनाकर सुदेश के अंगों को दिल्ली, रोहतक व पंचकूला में जरूरतमंद मरीजों को लगाने के लिए भेजा है। इससे तीन लोगों को नया जीवन मिलेगा।
सड़क हादसे में घायल सुदेश का हो गया था ब्रेन डेड
सुदेश पंचकूला में शिक्षा विभाग में क्लर्क के पद पर कार्यरत थे। वे अपनी पत्नी व एक बेटे के साथ चंडीगढ़ में रह रहे थे। हाल ही में 43 वर्षीय सुदेश कुमार अपनी दुकान से घर जा रहे थे। उन्हें कार ने टक्कर मार दी थी। टक्कर लगने के बाद उनके सिर पर गंभीर चोटें आईं। चोट लगने के बाद उनकी पत्नी मंजूबाला उन्हें लेकर जीएमसीएच-32 अस्पताल गईं। वहां से पंचकूला के सेक्टर-21 अल्केमिस्ट अस्पताल रेफर कर दिया गया। वहां भी उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ। 29 नवंबर को ईलाज के दौरान सुदेश कुमार का ब्रेन डेड हो गया था।
सुदेश की पत्नी ने लियाअं गदान का फैसला
सुदेश के ब्रेन डेड होने पर उसकी पत्नी मंजूबाला उनके अंगदान के लिए तैयार हो गईं। अल्केमिस्ट अस्पताल के चिकित्सकों ने ग्रीन कारिडोर बनाकर अंगदान भेजने की तैयारी की। इसमें से एक किडनी अल्केमिस्ट अस्पताल में ही एक मरीज को लगाई गई। एक किडनी रोहतक पीजीआई भेजी गई। दिल को दिल्ली के साकेत के मैक्स अस्पताल में भेजा है। मंजूबाला ने कहा कि उसके पति बेहद अच्छे इंसान थे। उनकी वजह से लोगों को नया जीवन मिलेगा, यह गर्व की बात है।