Govardhan parvat ki Pratima
पूरे देश की तरह शनिवार को शहर में भी गोवर्धन पूजा का पर्व पूरे उल्लास और भक्ति के साथ मनाया गया। ग्रामीणा इलाकों में भी गोवर्धन पूजा की विशेष तैयारियां देखने को मिलीं। सुबह से ही महिलाओं ने गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा बनाई (Govardhan parvat ki Pratima) और रंगोली से आंगन सजाया। परिवार की सुख- समृद्धि और खुशियों की कामना करते हुए, मंगल गीतों की मधुर धुन पर गोवर्धन महाराज की आराधना की गई।
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा और आस्था
गोवर्धन पूजा की जड़ें द्वापर युग से जुड़ी हुई हैं। कथा के अनुसार, ब्रज क्षेत्र में इंद्रदेव की पूजा होती थी, लेकिन एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र की बजाय Govardhan parvat ki Puja करने का सुझाव दिया, ताकि प्रकृति और धरती का आदर हो सके।
इंद्रदेव इस पर क्रोधित हो गए और ब्रज क्षेत्र में लगातार बारिश शुरू कर दी। संकट को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी को सुरक्षित किया। इस घटना के बाद से गोवर्धन पूजा का प्रचलन शुरू हुआ, जो आज भी प्रकृति और परमात्मा के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है।
गोवर्धन पूजा की पारंपरिक धूम:
शहर में गोवर्धन पूजा के इस पर्व पर हर आंगन में आस्था और भक्ति का माहौल देखने को मिला। महिलाओं ने गोवर्धन महाराज के स्वरूप को सजाते हुए विशेष पूजा-अर्चना की।
वे गाय के गोबर से पर्वत की आकृति (Govardhan parvat ki Pratima ) बनाकर मंगल गीत गाती हैं। अपने परिवार, विशेषकर बच्चों की सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना करती हैं। इस अवसर पर घर-घर में विशेष पकवान बनाए गए और प्रसाद के रूप में गोवर्धन महाराज को अर्पित किए गए।
प्रकृति और शक्ति के प्रति श्रद्धा का पर्व गोवर्धन पूजा ( Govardhan puja ) शहर वासियों के लिए केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि प्रकृति और शक्ति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक है।
इस दिन लोग प्रकृति के संरक्षण और संतुलन के महत्व को समझते हैं। गोवर्धन पूजा के इस भव्य उत्सव ( Govardhan puja utsav) में हर परिवार में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और गोवर्धन पर्वत के प्रति आस्था की गूंज सुनाई दी और शहर की फिजा भक्तिमय हो उठी।
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