शहरी लोगों के लिए पटाखे छोड़ना आतिशबाजी, किसानों के लिए जी का जंजाल बनी पराली

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For urban people, bursting crackers is like fireworks, but for farmers, stubble has become a problem

हरियाणा के कई जिलों में प्रदूषण अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है और सरकार और प्रशासन किसानों पर पराली जलाने को लेकर शिकंजा कैसे हुए हैं। लेकिन हिसार जैसे बड़े महानगर में रात और दोपहर बाद आतिशबाजी के बहाने खूब पटाखे छोड़े जा रहे हैं। ऐसे में शहरी लोग तो दिवाली पर आतिशबाजी का मजा ले रहे हैं, मोहित किस पराली को लेकर परेशान दिखाई दे रहा है।

किसानों ने बताया कि इस बार धान की प्रालिका ना ही तो कोई खरीदार मिल रहा है और ना ही सरकार के कहे मुताबिक उन्हें प्रलय की गांठ बनने वाली मशीन उपलब्ध हो रही है। वो जब वह परली में मजबूर होकर आग लगाते हैं तो प्रशासन उन्हें नोटिस ही नहीं बल्कि उनके खिलाफ मामला भी दर्ज करवा देता है। किसानों ने कहा कि किस तो 1 साल में केवल एक ही बार प्रदूषण के लिए जिम्मेवार बनता है बल्कि शहरों में बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां हर रोज इतना प्रदूषण फैला रहे हैं उन पर कोई कार्रवाई करने वाला नहीं है।

किसानों ने कहा कि अगर सरकार एक महीने के लिए वायुमंडल में प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों को बंद कर दे तो फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारी भी सुकून से अपने परिवार के साथ दिवाली मना सकते हैं और किस की प्रलय का भी समाधान हो सकता है। किसानों ने बताया कि शहरों में दीपावली के त्योहार से पहले ही आतिशबाजी करते हुए छोटे से लेकर बड़े तक पटाखे छोड़े जा रहे हैं उसके बावजूद उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही और ना ही पटाखे बेचने वालों पर कार्रवाई की जा रही है। जबकि बड़े-बड़े और छोटे शहरों में खुलेआम पटाखे झाड़ेली से बेची जा रहे हैं।

किसानों ने मांग की है कि उनके खेतों में पराली का उचित प्रबंध करने के लिए सरकार कोई ठोस कदम उठाए ताकि किसान की फसल कटते ही प्रलय का भी तुरंत समाधान हो जाए और किसान अपने गेहूं व अन्य फसलों की बिजाई समय पर कर सके। किसानों ने बताया कि एक तरफ तो फसल की कटाई के समय मजदूर नहीं मिलते और जब वह अपनी फसल को कंबाइन से कटवाते हैं तो उसके बचे अवशेषों ( फानों) को नीचे से कटकर उनकी गांठ बनने वाली मशीन उपलब्ध नहीं हो रही क्योंकि दर्जनों गांव पर केवल एक या दो ही मशीन है जबकि एक-एक गांव के पास हजारों हेक्टेयर भूमि पर धान की फसल रोपाई हुई थी।

किसानों ने सरकार से मांग की है कि मजदूरों द्वारा धान की फसल की कटाई का रेट भी फिक्स किया जाना चाहिए और फसल की कटाई के समय मनरेगा व अन्य उन सरकारी योजनाओं पर ब्रेक लगा देना चाहिए जिसे मजदूरों पर काम दिया जाता है ताकि खेतों में किसानों की फसल की कटाई समय रहते मजदूरों से करवाई जा सके।

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