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Ek Beijjat Hero Hindi Story (एक बेइज्जत हीरो ) : घर वालों के साथ बाहर वाले करते थे बेइज्जती, कर दी सबकी बोलती बंद

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“रोहित: एक बेइज्जत हीरो”

Ek Beijjat Hero Hindi Story :

रोहित हमेशा से ही घर का सबसे अलग बच्चा था। जहाँ उसके बड़े भाई-भाभी उससे नफ़रत करते थे, वो हर जगह उसे नीचा दिखाने का प्रयास किया करते। ताकि हर कोई उससे दूर रहे। वहीं वह हमेशा अपने ख्यालों में खोया रहता। उसे किताबें पढ़ने, चीजों को नए नजरिए से देखने और तर्क-वितर्क करने में मज़ा आता था। लेकिन उसके इस स्वभाव को घर में कभी किसी ने स्वीकार नहीं किया गया। उसके माता-पिता को लगता था कि वह निकम्मा है, कोई ढंग का काम नहीं करेगा और आखिरकार, उनकी इज्जत मिट्टी में मिला देगा। यही नजरिया गांव के लोगों और रोहित के रिश्तेदारों का था। उसकी प्रतिभा को केवल उसका एक दोस्त ही समझता था। भाई उसका हौसला बढ़ता और उसका मार्गदर्शन भी करता रहता था।

स्कूल में भी कुछ ऐसा ही हाल था। वह पढ़ाई में औसत था, लेकिन जब भी किसी ने उससे कोई सवाल पूछा, तो वह बिना किसी डर के सच बोलता। कई बार उसकी यह आदत उसे मुसीबत में डाल देती। अध्यापक उसे बदतमीज कहते, सहपाठी उसका मजाक उड़ाते, लेकिन उसने कभी अपने विचारों से समझौता नहीं किया। काम करवाने के बावजूद भी उसके काम की कोई कद्र नहीं करता था। हालांकि उसके घर वालों के साथ-साथ काफी लोगों के उसके बर्ताव की वजह से लाखों रुपए बच चुके थे। परंतु हर कोई उसे नफरत की नजर से ही देखता रहता था। जब भी किसी को रोहित से काम होता है तो उसकी तारीफ कर उसे काम निकलवा लिया जाता था लेकिन बाद में उसे धक्के ही मिलते थे।

घर की बेइज्जती

“तेरे से कुछ नहीं होगा, बस बकवास करता रह जाता है,” रोहित के पिता ने एक दिन गुस्से में कहा।

“हाँ, माँ, इसे बोलो कि कुछ काम करे। नहीं तो ज़िंदगीभर हमारे टुकड़ों पर जिएगा,” उसके बड़े भाई ने भी ताना मारा।

रोहित को इन बातों की आदत हो गई थी। घर में हर दिन कोई न कोई उसे बेइज्जत कर ही देता। कभी माँ उसे आलसी कहतीं, तो कभी पड़ोसी उसे आवारा समझते। उसके चाचा भी कहते, “ये लड़का अपनी ज़िंदगी खुद बर्बाद कर रहा है, इसे कुछ समझाओ।”

लेकिन रोहित के अंदर खुद्दारी कूट-कूट कर भरी थी। उसे यह सब सुनकर गुस्सा आता, लेकिन वह चुपचाप सब सहता रहा।

बाहर की दुनिया और बेइज्जती

घर में तो कोई उसे नहीं समझता था, लेकिन बाहर भी हाल कुछ अच्छा नहीं था। मोहल्ले में जब भी वह किसी से अपनी राय रखता, लोग मज़ाक उड़ाने लगते।

“तेरी बातें सुनकर लगता है कि तू खुद को बहुत बड़ा दार्शनिक समझता है!”

“अरे, ये बस बातें बनाना जानता है, असल ज़िंदगी में कुछ नहीं कर सकता।”

धीरे-धीरे रोहित को लोगों की इस सोच की परवाह करना बंद हो गया।

रोहित की खुद्दारी

एक दिन उसके कॉलेज में एक सेमिनार हुआ, जहाँ छात्रों को अपने विचार रखने थे। रोहित ने बेबाकी से अपनी बात रखी, लेकिन उसके विचार कुछ लोगों को पसंद नहीं आए।

एक प्रोफेसर ने गुस्से में कहा, “तुम्हें अपने बड़ों से ऐसे बात करने की तमीज नहीं है?”

रोहित ने आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया, “सर, अगर कोई गलत बात कर रहा हो, तो क्या मैं चुप रहूँ? सच बोलने का अधिकार तो सबको है।”

सभी चकित रह गए। यह पहली बार था जब किसी ने एक प्रोफेसर को खुलेआम जवाब दिया था। कुछ लोग उसकी हिम्मत से प्रभावित हुए, तो कुछ ने उसे बदतमीज करार दिया। लेकिन रोहित को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।

ताने और ठोकरें

समय बीतता गया, लेकिन बेइज्जती का सिलसिला रुका नहीं। जब भी वह कोई नया आइडिया लाता, लोग उसका मज़ाक उड़ाते।

“तेरी बातें सुनकर हंसी आती है,” एक दोस्त ने हँसते हुए कहा।

“तेरे अंदर दिमाग तो है, लेकिन तुझे इस्तेमाल करना नहीं आता,” दूसरे ने ताना मारा।

लेकिन रोहित ने हर ताने को अपनी ताकत बना लिया। वह अपने विचारों पर अडिग रहा और अपनी राह खुद बनाता रहा।

पहली जीत

एक दिन रोहित को एक स्टार्टअप कॉम्पिटिशन के बारे में पता चला। उसने अपने इनोवेटिव आइडिया के साथ उसमें भाग लिया। उसे भरोसा था कि उसकी सोच कुछ अलग है और वह कुछ नया कर सकता है।

हालांकि, जब उसने यह बात घर में बताई, तो सबने मजाक उड़ाया।

“तेरे जैसे लड़के स्टार्टअप नहीं चला सकते,” बड़े भाई ने हँसते हुए कहा।

“पहले ढंग से नौकरी तो कर ले, फिर बड़ी-बड़ी बातें करना,” पिता ने व्यंग्य किया।

लेकिन रोहित रुका नहीं। उसने कड़ी मेहनत की और अपने आइडिया को प्रेजेंट किया। प्रतियोगिता के फाइनल में जब उसका नाम विजेता के रूप में घोषित हुआ, तो सब हैरान रह गए।

सफलता की गूँज

अब रोहित का नाम अखबारों में छपने लगा। कॉलेज के वही प्रोफेसर, जिन्होंने उसे बेइज्जत किया था, अब उसकी तारीफ करने लगे। परिवार वालों को भी समझ आ गया कि वह कोई मामूली लड़का नहीं था।

एक दिन पिता ने उसे गले लगाकर कहा, “बेटा, हमें तुझ पर गर्व है।”

रोहित मुस्कुराया, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। वह जानता था कि उसे यह सम्मान सिर्फ इसलिए मिला क्योंकि उसने कभी अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया।

 

रोहित की कहानी उन सभी लोगों के लिए एक सबक है, जिन्हें समाज निकम्मा समझता है। खुद्दारी और सच बोलने की हिम्मत रखना आसान नहीं होता, लेकिन अगर इंसान अपने उसूलों पर डटा रहे, तो एक दिन दुनिया भी उसकी कद्र करने लगती है।

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