Strange coincidence: Kargil martyr Pavitra Kumar birthday and martyrdom day is 9 June
प्रणाम शहीदां नूं : आखिरी सांस तक लड़ते हुए कारगिल में शहीद हुआ था पवित्र श्योराण
गांव मिलकपुर में स्मारक स्थल पर शहीद पवित्र कुमार की प्रतिमा। |
हरियाणा न्यूज हिसार, सुनील कोहाड़: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा, की पंक्तियां किसी कवि ने कोई यूं ही नहीं लिखी। इन पंक्तियों के पीछे वीर सैनिकों का बलिदान है तो उनके द्वारा देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा है। इसके लिए हम बात कर रहे हैं 9 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में बलिदान हुए हिसार जिले के मिलकपुर गांव के पवित्र कुमार श्योरान की, जिन्होंने मात्र 21 वर्ष की आयु में देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी।
बता दें कि कारगिल में शहीद हुए पवित्र में बचपन से ही देशभक्ति कूट कूट कर भरी हुई थी। शहीद पवित्र का जन्म नारनौंद उपमंडल के गांव मिल्कपुर में 9 अगस्त 1978 को एक फौजी के घर में हुआ। उनके पिता स्वर्गीय किताब सिंह से बचपन से ही पिता से मिले देश सेवा के जज्बे को अपने दिल में बसा लिया था। बचपन से ही ऐसा जूनून शायद ही किसी बच्चे में देखने को मिले। पिता जब भी आर्मी से छुट्टी लेकर घर आते थे तो शहीद पवित्र उनसे खिलौनो में भी बंदूक की ही मांग करते थे। जब उसके पापा उसके लिए खिलौने के रूप में बंदूक ले आते तो कहता था कि पापा में भी बड़ा होकर फौजी बनूंगा और आपकी तरह देश की शरहद पर दुश्मनों को मारकर देश की सेवा करूंगा।
पवित्र ने गांव के सरकारी स्कूल से ही अपनी दसवीं तक कि शिक्षा पूरी की। देश सेवा के जज्बे के साथ साथ पढ़ाई में भी वो बहुत ही निपुण थे। ग्याहरवीं की पढ़ाई के लिए वो राखी शाहपुर की वोकेशनल में पढ़ाई शुरू की। पढ़ाई के साथ साथ खेलों में भी पवित्र हमेशा अवल आते थे। इसके बाद वो 29 फरवरी 1996 को 8 जाट रेजिमेंट में आर्मी में भर्ती हो गए। बचपन के अपने सपने को साकार कर दिखाया। 9 जुलाई 1999 को दुश्मनों से लोहा लेते हुए 11 दुश्मनों को मौत के घाट उतार कर देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए। बड़े इत्तेफाक की बात है कि शहीद पवित्र की जन्म व शहादत की तारीख 9 ही है। परिजनों ने प्रशासन से गांव के सरकारी स्कूल व गुलकनी से मिलकपुर तक सड़क का नाम शहीद पवित्र के नाम से रखने की मांग की है।
बेटा बचपन से ही बहादुर था और देश की सेवा करने का जज्बा उसके दिल में था। इसलिए वह पढ़ाई के दौरान ही आर्मी में भर्ती हो गया। उसे ये प्ररेणा उनके पिता से मिली क्योंकि उनके पिता भी फौज में ही थे। उन्हें इस बात पर गर्व है की उसका बेटा देश के 11 दुश्मनों को मारकर शहीद हुआ है। उन्होंने इच्छा जताई की पवित्र जैसे बहादुर देश पर मर मिटने वाले बच्चे सभी माताओ की कोख से पैदा हो ताकि देश की सेवा कर सके। सुजानी देवी, शहीद की मां।
पवित्र कुमार बचपन से ही विनम्र सभाव के थे। घर वाले अगर किसी बात पर गुस्सा हो जाते थे तो पवित्र कुमार उसका जवाब हंसते हुए देते थे। 1985 में जब उसके पिता किताब सिंह 7 केवलरी आर्मी से सेवानिवृत हुए तब से ही पवित्र ने सेना में भर्ती होने व देश की सेवा करने का जज्बा पैदा हो गया था।
प्रदीप व सवित्र, शहीद के भाई।
देश सेवा का जज्बा उसे अपने पिता से विरासत में मिला था। दुसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि फौजी पिता के घर जन्म होने के कारण उसके संस्कार में ही राष्ट्र प्रेम की भावना भर गई थी। अपने सपने साकार कर उसने अपने गांव व देश का नाम रोशन किया है।
महा सिंह, शहीद का ताऊ।
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